♥♥♥पीड़ा में आनंद..♥♥
पीड़ा में आनंद तलाशा!
अपने दुख को बड़ा तराशा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा!
हाँ सच है मेरे अपनों को,
मेरे दुख पे तरस न आया!
जिसने जब भी चाहा मुझको,
जी भरकर के मुझे रुलाया!
एक बार भी नहीं उन्होंने,
मेरे दुख को दिया दिलासा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा...
दर्द के हाथों खंडित होकर,
बड़ा ही पीड़ित जीवन होता!
लेकिन दुख के बाद यहाँ पर,
खुशियों का नवजीवन होता!
"देव" नहीं जो पीड़ा समझे,
उनसे रखो कभी न आशा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा!"
....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--०८.०१.२०१३
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