♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शीश .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेदर्दी से शीश काटकर, वीरों का वो मुस्काते हैं!
मगर यहाँ के नेता फिर भी, अंधे बहरे हो जाते हैं!
एक सैनिक का निर्ममता से,
कत्ल भी इनको नहीं रुलाता!
वो तो रखते छुरी बगल में,
और हम रखते मित्र का नाता!
मित्र बताकर धोखा देना,
आखिर कैसा अपनापन है,
"देव" मित्रता की सीमा में,
ऐसे मंजर कभी न आता!
हम रोते हैं करुण रुदन में, गीत खुशी का वो गाते हैं!
बेदर्दी से शीश काटकर, वीरों का वो मुस्काते हैं!"
............चेतन रामकिशन "देव"...............
दिनांक--०९.०१.२०१३
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