Tuesday 5 February 2013

♥प्रीत की डोर..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्रीत की डोर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर!
सखी बांध ली जबसे मैंने, तेरी प्रीत की डोर!
तिमिर मिटा है जीवन पथ से, हुआ नया प्रकाश,
सखी तुम्हारा प्रेम है जैसे, नयी नवेली भोर!

सखी तुम्हारी प्रीत है अद्भुत, सुन्दर है व्यवहार!
सदा ही मुझको प्रेरित करते, सखी तेरे उद्गार!

सखी तुम्हारा है प्रेम है व्यापक, नहीं है कोई छोर!
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर......

सखी तुम्हारे प्रेम से मेरे, स्वप्न हुए साकार!
सखी तुम्हारा प्रेम है जैसे, कुदरत का उपहार!
सखी तुम्हारे प्रेम ने मुझको, दिए खुशी के फूल,
सखी तुम्हारे प्रेम है जैसे, नदियों की जलधार!

सखी बड़ा ही प्यारा लगता, मुझे तेरा संवाद!
सखी तुम्हारे प्रेम से भूला, मैं तो सभी विवाद!

दृश्य बड़ा ही मनभावन है, वन में नाचे मोर!
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर.....

सखी तुम्हारी अनुभूति है, हर क्षण मेरे संग!
सखी तुम्हारे प्रेम से मिलते, इन्द्रधनुष के रंग!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, "देव" हुए प्रसन्न,
सखी तुम्हारे प्रेम से मिलती, मन को सदा उमंग!

सखी तुम्हारे प्रेम का मिलना, बड़े भाग्य की बात!
सखी तुम्हारे प्रेम से हर्षित, मेरे दिन और रात!

सखी तुम्हारी भावुकता से, मन भी हुआ विभोर!
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर!"

"
प्रेम-जब परस्पर समर्पण के साथ ह्रदय में स्फुट होता है, तो निश्चित रूप से सकारात्मकता की प्राप्ति होती है! प्रेम की दीप्ति से, मन के अंधकार दूर हो जाते हैं, तो आइये इस दीप्ति को ग्रहण करें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०२.२०१३

(मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित)
सर्वाधिकार सुरक्षित..

1 comment:

कालीपद "प्रसाद" said...

देव जी बहुत सुन्दर मनभावन गीत है ,बधाई .
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