♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरा आपा.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पतझड़ कभी, सावन कभी, बारिश ने भिगोया!
पर मैंने कभी हार के, आपा नहीं खोया!
गम की तपन से दिल मेरा फौलाद हो गया,
अश्कों ने कहा फिर भी मगर, मैं नहीं रोया!
हाँ सच है शराफत से, मुझे कुछ न मिल सका,
पर मैंने कभी जुल्म का, अंकुर नहीं बोया!
चिथड़ों में भी जीता रहा, तड़पा भी भूख से,
पर मैं किसी इन्सान को, ठग कर नहीं सोया!
ए "देव" पापियों की, भीड़ बढ़ गयी इतनी,
गंगा ने भी गुस्से में कोई, पाप न धोया!"
............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-०५.०२.२०१३
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