Monday, 4 March 2013

♥परिस्थति..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥परिस्थति..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना!
बस प्रभाव जमाने भर को, मिथ्या को प्रयुक्त न करना!
इस दुनिया में हर व्यक्ति ही, मार्ग सफलता का चाहता है,
किन्तु अपनी तृष्णा में तुम, नैतिकता को लुप्त न करना! 

समरसता से रहना सीखो, मधुर सुरीला गान बनो तुम!
जिसे देखकर मन पुलकित हो, इक ऐसे इंसान बनो तुम!

कभी सफलता की इच्छा में, अपना मन अभियुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना...

न तन से सम्बन्ध रखो तुम, मन से मन का नाता जोड़ो!
नहीं समझता जो मानवता, उस व्यक्ति से मिलना छोड़ो!
इस जीवन का अर्थ सार्थक, उसी दशा में संभव होगा,
तुम औरों को सीख से पहले, अपने जीवन का रुख मोड़ो!

कभी किसी को पीड़ा देकर, तुम सुख के अवसर न पाना!
बड़ी खुशी पायेगा मनवा, किसी के दुख में साथ निभाना!

इस आधुनिक परिवेश में, मर्यादा उन्मुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना...

अपने पढ़े-लिखे मन से तुम, काम कोई छोटा न मानो!
बिन मेहनत के कुछ नहीं मिलता, इस युक्ति की कीमत जानो!
"देव" निराशा में रहने से, बस जीवन कुंठित होता है,
तुम मन में आशायें भर कर, अपनी मंजिल को पहचानो!

एक दिन में ही कुछ नहीं मिलता, इसीलिए संतोष करो तुम!
नहीं डिगो तुम लक्ष्य से अपने, न ही मन में रोष करो तुम!

भूले से भी इस युक्ति को, तुम मन से आमुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना!"

"
जीवन-कभी दुख, कभी पीड़ा, कभी विरह तो कभी दंड, किन्तु जीवन की इन दशाओं में, साहस, मेहनत और आत्मविश्वास की युक्ति से जीवन को गतिशीलता मिलती है, तो आइये जीवन को गतिशील बनायें.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०३.२०१३

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