♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वक्त का सूरज,..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज भले ही वक्त का सूरज, मुझको केवल झुलसाता है!
आज भले ही चाँद रात का, विरह भाव में तड़पाता है!
आज भले ये तारे मुझको, चिढ़ा रहे हों मेरी हार पर,
आज भले ही काला बादल, घना अँधेरा कर जाता है!
लेकिन मन में आशाओं के, दीप जलाने मैं निकला हूँ!
गम की भारी चट्टानों को, यहाँ हिलाने मैं निकला हूँ!
वही हारता है जीवन से, जो पीड़ा से डर जाता है!
आज भले ही वक़्त का सूरज, मुझको केवल झुलसाता है...
आज भले ही बुरे वक़्त में, अपनों का रुख बदल गया हो!
आज भले ही बुरे वक्त में, पैर हमारा फिसल गया हो!
"देव" मगर वो पछतायेंगे, एक दिन अपनी मनमानी पर,
आज भले उनका अपनापन, मोम की तरह पिघल गया हो!
रोज दर्द के प्याले पीकर, शक्ति का वर्धन करता हूँ!
उठने की कोशिश रहती है, भले ही मैं कितना गिरता हूँ!
आग को सहते सहते एक दिन, लोहा कुंदन बन जाता है!
आज भले ही वक़्त का सूरज, मुझको केवल झुलसाता है!"
....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२५.०४.२०१३
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