Thursday, 25 April 2013

♥♥पत्थर का बुत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पत्थर का बुत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रो रो कर आँखों में लाली, और मेरा मन विचलित होता!
सच की कीमत नहीं है कोई, झूठ यहाँ पर अद्भुत होता!
जिस इन्सां को आह किसी, नहीं सुनाई देती जग में,
बेशक वो दिखता हो मानव, पर वो पत्थर का बुत होता!

लोग यहाँ पर मिन्नत करके, भले तड़प कर मर भी जायें!
लेकिन पत्थर के बुत जैसे, मानव फिर भी जश्न मनायें!

बिन पानी के इस दुनिया में, कहाँ मरुस्थल सुरभित होता!
रो रो कर आँखों में लाली, और मेरा मन विचलित होता.....

इस दुनिया में मानवता का, लगभग सारा पतन हो गया!
बस अपना ही घर भरने का, हर मानव का जतन हो गया!
"देव" ये आलम देखके मेरा, दिल रोता है फूट फूट कर,
बस अपने ही सुख में शामिल, मानव का हर यतन हो गया!

दर्द किसी का समझ सके न, किसी की पीड़ा जान सके न!
वो इन्सां इंसान नहीं है, जो अपनायत मान सके न!

अभिमान ऐसे मानव का, एक दिन किन्तु है मृत होता!
रो रो कर आँखों में लाली, और मेरा मन विचलित होता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२५.०४.२०१३

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