♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द की धूप... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!
दर्द की धूप में जल रहा हूँ बहुत, कोई राहत का मुझको शज़र चाहिए!
रास्ते बंद हैं सारी खुशियों के पर, फिर भी उम्मीद दिल में बची है जरा,
थोडा टुकड़ा मिले बस जमीं का मुझे, न ही चाहा के मुझको शिखर चाहिए!
रौशनी मंद है और अँधेरा घना, पर किसी से जरा भी शिकायत नहीं!
जिनको चाहा है उनको कहूँ बेवफा, मेरे दिल की मुझे ये इजाजत नहीं!
दर्द के इस सुलगते बियांबान में, एक पानी की मुझको लहर चाहिए!
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए...
नासमझ बनके जो मुझको समझाते हैं, वो सुनेंगे दुखन क्या मेरे दर्द की!
वो यहाँ मुझको देंगे दवा क्या भला, जिसने पाई नहीं हो तपन दर्द की!
"देव" मैं अपने अश्कों को पीता रहा, उम्र के आखिरी छोर तक भी मगर,
कोई ऐसा मुझे पर नहीं मिल सका, जिसने समझी चुभन हो मेरे दर्द की!
थोड़ी हिम्मत बची है जिये जाऊंगा, अपने हाथों से मरना गवारा नहीं!
मेरी तन्हाई हर पल मेरे साथ है, क्या हुआ जो किसी का सहारा नहीं!
दर्द से लड़ जो सकूँ निहत्थे भी में, हौंसले का मुझे वो ज़हर चाहिए!
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!"
................................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-२०.०६.२०१३
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!
दर्द की धूप में जल रहा हूँ बहुत, कोई राहत का मुझको शज़र चाहिए!
रास्ते बंद हैं सारी खुशियों के पर, फिर भी उम्मीद दिल में बची है जरा,
थोडा टुकड़ा मिले बस जमीं का मुझे, न ही चाहा के मुझको शिखर चाहिए!
रौशनी मंद है और अँधेरा घना, पर किसी से जरा भी शिकायत नहीं!
जिनको चाहा है उनको कहूँ बेवफा, मेरे दिल की मुझे ये इजाजत नहीं!
दर्द के इस सुलगते बियांबान में, एक पानी की मुझको लहर चाहिए!
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए...
नासमझ बनके जो मुझको समझाते हैं, वो सुनेंगे दुखन क्या मेरे दर्द की!
वो यहाँ मुझको देंगे दवा क्या भला, जिसने पाई नहीं हो तपन दर्द की!
"देव" मैं अपने अश्कों को पीता रहा, उम्र के आखिरी छोर तक भी मगर,
कोई ऐसा मुझे पर नहीं मिल सका, जिसने समझी चुभन हो मेरे दर्द की!
थोड़ी हिम्मत बची है जिये जाऊंगा, अपने हाथों से मरना गवारा नहीं!
मेरी तन्हाई हर पल मेरे साथ है, क्या हुआ जो किसी का सहारा नहीं!
दर्द से लड़ जो सकूँ निहत्थे भी में, हौंसले का मुझे वो ज़हर चाहिए!
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!"
................................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-२०.०६.२०१३
No comments:
Post a Comment