Sunday, 25 August 2013

♥काला बाजार..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥काला बाजार..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देश के चारों स्तंभों को, अब मैं तो बाजार लिखूंगा!
मैं मुफलिस की आंख से गिरते, अश्कों की बौछार लिखूंगा!
न हिन्दू दुश्मन, न मुस्लिम, न ही सिख, इसाई कोई,
देश के गद्दारों की खातिर, झाँसी की तलवार लिखूंगा!

देश के भीतर छुपे हुए, दुश्मन को सब मिलकर के छांटो!
देश का दुश्मन तो दुश्मन है, हिन्दू मुस्लिम में क्यूँ बाँटो!

मातृभूमि के हित में अपने, लहू की मैं तो धार लिखूंगा!
देश के चारों स्तंभों को, अब मैं तो बाजार लिखूंगा………

लोग करोड़ों इस भारत के, दो रोटी की खातिर मरते!
और देश के खद्दरधारी, अरबों का घोटाला करते!
"देव" देश में निर्दोषों को, यहाँ सजा मिलती है लेकिन,
सड़कों पे औरत की इज्ज़त, गुंडे देखो छलनी करते!

देश के भीतर ही देखो तुम, नहीं सुरक्षित देश की नारी!
और देश के युवा वर्ग को, मार रही है ये बेकारी!

जिसको फिक्र नहीं लोगों की, क्या उसको सरकार लिखूंगा!
देश के चारों स्तंभों को, अब मैं तो बाजार लिखूंगा!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२६.०८.२०१३

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