♥♥♥♥♥♥♥♥ग़मों की नदी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है!
फूलों की हसरत थी लेकिन, काँटों जैसी चुभन हुयी है!
आँखों से अश्कों की बूंदें, गिरती हैं बारिश के जैसी,
हुयी सांस भी भारी भारी, दिल में इतनी दुखन हुयी है!
झूठमूठ की हंसी को हंसकर, मैं पीड़ा को कम करता हूँ!
अपने आंसू पी पीकर ही, मैं अधरों को नम करता हूँ!
चंदन भूल गया शीतलता, अब उसमें भी अगन हुयी है!
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है....
दिल के सब जज्बात मिट गए, सपने सारे बिखर गए हैं!
मिट गयी खुशियों की हर रेखा, दुख के बिंदु उभर गए हैं!
"देव" गिला अब किससे करना, तकदीरों की रंजिश है ये,
अश्कों से मुंह मांज मांज कर, हम भी देखो निखर गए हैं!
करो निवेदन चाहें कितना, दुनिया लेकिन मूक बधिर है!
नहीं पसीजे "देव" यहाँ वो, मेरा कितना बहा रुधिर है!
आज न जाने क्यूँ मानवता, इस तरह से दफ़न हुयी है!
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है!"
......................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२०.०९.२०१३
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है!
फूलों की हसरत थी लेकिन, काँटों जैसी चुभन हुयी है!
आँखों से अश्कों की बूंदें, गिरती हैं बारिश के जैसी,
हुयी सांस भी भारी भारी, दिल में इतनी दुखन हुयी है!
झूठमूठ की हंसी को हंसकर, मैं पीड़ा को कम करता हूँ!
अपने आंसू पी पीकर ही, मैं अधरों को नम करता हूँ!
चंदन भूल गया शीतलता, अब उसमें भी अगन हुयी है!
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है....
दिल के सब जज्बात मिट गए, सपने सारे बिखर गए हैं!
मिट गयी खुशियों की हर रेखा, दुख के बिंदु उभर गए हैं!
"देव" गिला अब किससे करना, तकदीरों की रंजिश है ये,
अश्कों से मुंह मांज मांज कर, हम भी देखो निखर गए हैं!
करो निवेदन चाहें कितना, दुनिया लेकिन मूक बधिर है!
नहीं पसीजे "देव" यहाँ वो, मेरा कितना बहा रुधिर है!
आज न जाने क्यूँ मानवता, इस तरह से दफ़न हुयी है!
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है!"
......................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२०.०९.२०१३
No comments:
Post a Comment