Saturday, 14 September 2013

♥मूल पथों से छिटकी कविता ♥

♥मूल पथों से छिटकी कविता ♥
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मूल पथों से छिटकी कविता!
दर्पण जैसी चटकी कविता!
कभी भास्कर सी उजली थी,
आज तिमिर में भटकी कविता!

ये कविता की कमी नहीं है,
आज भाव ही सुप्त हो रहे!

आज काव्य से दिशा ज्ञान के,
भाव सभी वो लुप्त हो रहे!

जो कविता के मापदंड को,
कभी नहीं पूरित करते हों,

आज वो सारे तत्व देखिये,
कविता में प्रयुक्त हो रहे!

अभिव्यक्ति पे हुआ है हमला,
द्वेष राग में, अटकी कविता!
कभी भास्कर सी उजली थी,
आज तिमिर में भटकी कविता!

काव्य आत्मा की ज्योति है,
इसे लक्ष्य से दूर न करना!

ममता पूरित काव्य नदी को,
अभिमान से चूर न करना!

"देव" कभी तुम कलम पे अपने,
मिथ्या का श्रंगार न करना!

मानवता को प्रेम सिखाना,
हिंसा का प्रचार न करना!

आज मानवीय संदर्भों के,
अनुकरण से भटकी कविता!
कभी भास्कर सी उजली थी,
आज तिमिर में भटकी कविता!"

......चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-१५.०९.२०१३

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