Sunday, 29 September 2013

♥♥विस्फोटक..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विस्फोटक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब अपनों की नीति देखो, द्वेष राग पर आधारित हो!
प्रेम के बदले जीवनपथ पर, विरह भाव जब संचारित हो!
जब नयनों का नीर देखकर, अपना सम्बन्धी सो जाये,
रूपये, पैसे और दौलत से, जब अपनायत निर्धारित हो!

जब मिथ्या आरोप लगाकर, दुनिया निंदा प्रेषित करती!
जब दुनिया अपने ही सुख का, आलेखन आरेखित करती!
उस अवधि में कोमलता भी, विस्फोटक बनना चाहती है,
जब ये दुनिया निर्दोषों को, दंड भाव संप्रेषित करती!

अंतर्मन का करुण निवेदन, अपने जब जब ठुकराते हैं!
तब मानव की मनोदशा पर, कुंठित छाले खिल जाते हैं!
"देव" यहाँ पर वो अपनायत, कहाँ भला है किसी काम की,
जब अपनों के हाथों देखो, अपनों के घर जल जाते हैं!

इतनी सारी पीड़ा लेकर, लोग यहाँ पर जीते तो हैं!
वे अपनों हाथों से अपने, घाव यहाँ पर सीते तो हों!
लेकिन काश यदि वो अपने, अपनायत का सार समझते!
तो दुनिया से अपनायत के, दीपक देखो कभी न बुझते!

जो अपनों को दण्डित करके, सुखी भाव से मुस्काते हैं!
उन लोगों के जीवन में भी, दुःख के गहरे दिन आते हैं!
जब अपनों के मुख से केवल, द्वेष भावना प्रचारित हो!
जब अपनों की नीति देखो, द्वेष राग पर आधारित हो!

तब तक देखो इस दुनिया से, ये विस्फोटक  बह नहीं सकता!
जब तक मानव अपनायत के संग, दुनिया में रह नहीं सकता!"

........................चेतन रामकिशन "देव"...............................
दिनांक-२९.०९.२०१३

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