♥♥♥♥♥♥प्रेम की प्रस्तावना..♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है!
तेरी वाणी में मधुरता और तेरा मन सुचित है!
प्रीत ने मुझको तुम्हारी, हर घड़ी बस ये सिखाया,
हर किसी मानव के हित में, प्रेम का रस्ता उचित है!
प्रेम की इस धारणा को, अपने मन में धर लिया है!
प्रेम की धारा को मैंने, अपने मन में भर लिया है!
प्रेम का पथ न ही दूषित, प्रेम का पथ न दुरित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है….
तुम सबद हो प्रेम पूरित, तुम सवेरा प्रीत का हो!
तुम कविता की रचयिता, भाव तुम ही गीत का हो!
तुमसे ही जीवन में मेरे, प्रेरणा का रंग भरा है,
तुम ही आशा की लड़ी हो, तुम समर्थन जीत का हो!
उगते सूरज की किरण हो, पूर्णिमा की रात हो तुम!
जिंदगी की इस गति में, प्राण बनकर साथ हो तुम!
प्रेम का रंग आसमानी, आत्मा से ये उदित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है……
प्रेम बिन कुछ भी नहीं है, प्रेम हर एहसास में है!
प्रेम में वो दूर होकर भी, हमारे पास में है!
प्रेम से रातें मनोरम, प्रेम से दिन भी सुहाना,
ये विरह में, ये मिलन में, प्रेम हर आभास में है!
"देव" जबसे प्रेम की, बूंदों ने मेरा मन छुआ है!
तब से मेरा दिल भी देखो, प्रेम का सागर हुआ है!
प्रेम जाति, धर्म, मजहब और हिंसा से रहित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है!"
"
प्रेम-एक ऐसा शब्द, जिसका विस्तार पटल सागर से भी विस्तृत! प्रेम का एहसास, चाहें वो प्रेमी-प्रेमिका के मध्य हो, अथवा सम्बन्धियों के, वो समाज के भीतर का हो अथवा देश के समर्पण से जुड़ा, प्रेम, हर भाव, हर सम्बन्ध में अमुल्य होता है! प्रेम हेतु परस्पर सम्मुख होना ही शर्त नहीं, प्रेम तो एहसास की वो पावन अनुभूति है, जिसे आत्मा से महसूस किया जा सकता है, तो आइये प्रेम करें।"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१२.१०.२०१३
" सर्वाधिकार सुरक्षित"
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है!
तेरी वाणी में मधुरता और तेरा मन सुचित है!
प्रीत ने मुझको तुम्हारी, हर घड़ी बस ये सिखाया,
हर किसी मानव के हित में, प्रेम का रस्ता उचित है!
प्रेम की इस धारणा को, अपने मन में धर लिया है!
प्रेम की धारा को मैंने, अपने मन में भर लिया है!
प्रेम का पथ न ही दूषित, प्रेम का पथ न दुरित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है….
तुम सबद हो प्रेम पूरित, तुम सवेरा प्रीत का हो!
तुम कविता की रचयिता, भाव तुम ही गीत का हो!
तुमसे ही जीवन में मेरे, प्रेरणा का रंग भरा है,
तुम ही आशा की लड़ी हो, तुम समर्थन जीत का हो!
उगते सूरज की किरण हो, पूर्णिमा की रात हो तुम!
जिंदगी की इस गति में, प्राण बनकर साथ हो तुम!
प्रेम का रंग आसमानी, आत्मा से ये उदित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है……
प्रेम बिन कुछ भी नहीं है, प्रेम हर एहसास में है!
प्रेम में वो दूर होकर भी, हमारे पास में है!
प्रेम से रातें मनोरम, प्रेम से दिन भी सुहाना,
ये विरह में, ये मिलन में, प्रेम हर आभास में है!
"देव" जबसे प्रेम की, बूंदों ने मेरा मन छुआ है!
तब से मेरा दिल भी देखो, प्रेम का सागर हुआ है!
प्रेम जाति, धर्म, मजहब और हिंसा से रहित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है!"
"
प्रेम-एक ऐसा शब्द, जिसका विस्तार पटल सागर से भी विस्तृत! प्रेम का एहसास, चाहें वो प्रेमी-प्रेमिका के मध्य हो, अथवा सम्बन्धियों के, वो समाज के भीतर का हो अथवा देश के समर्पण से जुड़ा, प्रेम, हर भाव, हर सम्बन्ध में अमुल्य होता है! प्रेम हेतु परस्पर सम्मुख होना ही शर्त नहीं, प्रेम तो एहसास की वो पावन अनुभूति है, जिसे आत्मा से महसूस किया जा सकता है, तो आइये प्रेम करें।"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१२.१०.२०१३
" सर्वाधिकार सुरक्षित"
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