♥♥♥♥♥♥गांव का देवता...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खेत खलियान में बोकर के अन्न के दाने,
गांव का देवता दुनिया का, उदर भरता है!
इतना करके भी उसे, हक़ नहीं मिलता वाजिब,
चंद रुपयों में ही वो, अपनी गुजर करता है!
उसकी आँखों में खिंची, लाल लकीरें देखो,
दर्द का अपनी निगाहों में, समर भरता है!
उसपे पड़ती हैं यहाँ, लाठियां सरकारों की,
अपने हक़ के लिए, वो जब भी जिकर करता है!
न चुके उससे अगर सूद, असल कुछ भी तो,
उसकी फसलों पे सेठ, तिरछी नजर करता है!
उसको राहों में यहाँ, सब ही बिछायें कांटे,
पैदा सबके लिए जो देखो, शज़र करता है!
"देव" हक़दार है ये, देवता इबादत का,
चोट खाकर भी सदा, सबकी फिकर करता है!"
.............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक-२८.१२.२०१३
खेत खलियान में बोकर के अन्न के दाने,
गांव का देवता दुनिया का, उदर भरता है!
इतना करके भी उसे, हक़ नहीं मिलता वाजिब,
चंद रुपयों में ही वो, अपनी गुजर करता है!
उसकी आँखों में खिंची, लाल लकीरें देखो,
दर्द का अपनी निगाहों में, समर भरता है!
उसपे पड़ती हैं यहाँ, लाठियां सरकारों की,
अपने हक़ के लिए, वो जब भी जिकर करता है!
न चुके उससे अगर सूद, असल कुछ भी तो,
उसकी फसलों पे सेठ, तिरछी नजर करता है!
उसको राहों में यहाँ, सब ही बिछायें कांटे,
पैदा सबके लिए जो देखो, शज़र करता है!
"देव" हक़दार है ये, देवता इबादत का,
चोट खाकर भी सदा, सबकी फिकर करता है!"
.............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक-२८.१२.२०१३
No comments:
Post a Comment