Friday, 27 December 2013

♥♥जलते घोंसले...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥जलते घोंसले...♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द होता है यहाँ, घाव जो छिल जाते हैं!
ख्वाब जब सारे यहाँ ख़ाक में मिल जाते हैं!

घर उजड़ने का दर्द, पूछो उन परिंदों से,
आग में जिनके यहाँ घोंसले जल जाते हैं!

ए अमीरों जरा उनकी तड़प को जानो तुम,
जिन गरीबों के बदन, शीत में गल जाते हैं!

आज अपनों पे यकीं, मुझको जरा सा भी नहीं,
सब बुरे वक़्त में, पल भर में बदल जाते हैं!

रेशमी खोल में वो देखो कोयला निकला,
झूठ के लेप से अब रूप बदल जाते हैं!

जिंदगी उनकी ग़मों के, लिबास में होती,
जिनके अरमां यहाँ, शीशे से पिघल जाते हैं!

"देव" मुझको नहीं आता, वो तरीका कैसे,
लोग औरों को गिराकर के, संभल जाते हैं!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-२७.१२.२०१३

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