Tuesday, 7 January 2014

♥♥♥तेरे ख़त...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरे ख़त...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आंच में गम की तेरे ख़त को जलाने निकला !
अपने एहसास को मिट्टी में मिलाने निकला!

तेरी उम्मीद में जागीं जो रात भर तनहा,
अपनी उन आँखों को, कुछ देर सुलाने  निकला!

फूल फिर से न कोई, दिल को मेरी छलनी करे,
अपने दामन में यहाँ, ख़ार खिलाने निकला! 

दर्द के गहरे अँधेरे से दूर होने को,
चाँद की रोशनी मैं खुद को दिलाने निकला! 

बिना बरसात के सूखा है, जिंदगानी में,
मैं इसी वास्ते आँखों को रुलाने निकला!

तेरी नादानी थी या जानकर किया तूने,
तेरे हर जुर्म को मैं हँसके भुलाने निकला! 

"देव" एक रोज यहाँ फिर नयी सुबह होगी,
अपने दिल को ये भरोसा मैं दिलाने निकला!"

.............चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-०७.०१.२०१४

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