♥♥♥♥♥♥♥♥मशीनो का आदमी...♥♥♥♥♥♥♥♥
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा!
भावनाओं की फसल काटकर, शूलों का सत्कार हो रहा!
प्रेम की किरणें लुप्त हो रहीं, अब घृणा से मन ग्रसित है,
मानवता की देह पे देखो, अब घातक प्रहार हो रहा!
मिन्नत, करुणा और निवेदन, की कोई परवाह नहीं है!
सड़क पे कोई मरता लेकिन, किसी के दिल में आह नहीं है!
शीतकाल के हिम में जमकर, कोई निर्धन मर जाता है,
पर धनिकों के पास में देखो, अनुभूति की दाह नहीं है!
आज मशीनो की दुनिया में, पत्थर दिल संसार हो रहा!
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा.....
आज आदमी अरब से ऊपर, लेकिन इंसां लुप्त हो गए!
भले पड़ोसी चीखे रोये, हम निद्रा में सुप्त हो गए!
आज वफ़ा और अपनायत के, भाव जमीं में गड़े हुए हैं,
हम रुपयों की चकाचोंध के, अंधकार में गुप्त हो गए!
बेदर्दी में आज आदमी, पत्थर दिल किरदार हो रहा!
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा!
प्रेम ग्रन्थ में प्रेम नहीं है, बस काले अक्षर दिखते हैं!
नकली सूरत मुंह पर जड़कर, लोग यहाँ सुन्दर दिखते हैं!
"देव" यहाँ कहना आसां है, लेकिन करना बड़ा ही मुश्किल,
कलमकार भी छोटे दिल से, बड़ी बड़ी बातें लिखते हैं!
आज आदमी का दुनिया में, दयाहीन किरदार हो रहा!
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा!"
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आज मशीनों की दुनिया में, इंसान लुप्त हो रहे हैं, बेशक आदमियों की भीड़ बढाकर हमने कीर्तिमान स्थापित किये हों, बेशक हमने बड़ी बड़ी इमारतें बनाकर गगन छूने का प्रयास कर लिया हो, भले ही हमने पद सँभालने के बाद बहुत बहुत बड़े व्याख्यान दे लिए हों, पर अपना दिल ही बड़ा न कर पाये, इंसान ही न बन पाये तो ये ऊंचाइयां किस काम की, तो आइये चिंतन करें और इंसान बनने का प्रयास करें! "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०७.०१.२०१४
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सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "
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