Monday, 6 January 2014

♥♥बंदिशे...♥♥

♥♥♥♥♥बंदिशे...♥♥♥♥♥♥
प्यार पे बंदिशे लगाने को!
लोग कहते हैं ज़हर खाने को!

चाँद भी छुप गया है अम्बर में,
नहीं तारे हैं जगमगाने को!

मेरे छप्पर से रिस रहा पानी,
न जगह अब है सर छुपाने को!

गम को गीतों में कर लिया शामिल,
दर्द बाकी है गुनगुनाने को!

मान जाओ के अब न रूठे रहो,
फूल लाया हूँ मैं मनाने को!

दर्द से दिल झुलस रहा लेकिन,
नकली चेहरा है मुस्कुराने को!

मर गया मैं दफ़न हुयी चाहत,
एक सबक मिल गया ज़माने को!

तुमसे विनती है दिल नहीं तोड़ो,
कम नहीं लोग दिल दुखाने को!

"देव" तुमसे नहीं गिला शिक़वा,
है जनम मेरा दर्द पाने को!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०६.०१.२०१४

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