Sunday, 5 January 2014

♥♥कर्ज़दार...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कर्ज़दार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी नेता कभी अफसर का वो शिकार बना!
कभी वो सेठ के रुपयों का कर्ज़दार बना!
नहीं दो वक़्त की रोटी भी उसके हाथों में,
कभी बीमार तो मुफ़लिस कभी लाचार बना!

सर्द रातों में न उस पर रजाई होती है!
उसके ज़ख्मों की यहाँ कब दवाई होती है!

ठण्ड से मर गया तो वो ही ईश्तहार बना!
कभी नेता कभी अफसर का वो शिकार बना....

नहीं आटा न उसे दाल मयस्सर होती!
उसके सर को नहीं तिरपाल मयस्सर होती!
"देव" एक पल के लिए चैन सुकूं पाने को,
उसको चादर न कोई शाल मयस्सर होती!

उसकी संतान कुपोषित यहाँ रह जाती है!
जिंदगी उसकी यहाँ दर्द में बह जाती है!

वो बिना ज़ुर्म के ही, देखो गुनहगार बना!
कभी नेता कभी अफसर का वो शिकार बना!"

..............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०५.०१.२०१४

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