♥♥♥♥♥♥♥♥आईना देख के...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी रोकर कभी हंसकर के, सफ़र काट लिया!
आईना देख के दुख दर्द, अपना बाँट लिया!
जिसने ज़ख्मों पे मेरे, देखो लगाया मरहम,
भीड़ से उसको अलग, मैंने यहाँ छाँट लिया!
उम्र भर जिसने उसे छाँव, यहाँ बख्शी थी,
उस लकड़हारे ने उस पेड़ को भी काट लिया!
सर छुपाने के लिए एक जरा, छप्पर भी,
इस बुरे वक़्त की दीमक ने यहाँ चाट लिया!
मेरे एहसास ने जब चाँद को, छूना चाहा,
कभी समझाया, कभी मैंने उसे डाँट लिया!
जिसने पाला था उसे, अपने खूँ पसीने से,
उसी बेटे ने गला उसका, मगर काट लिया!
"देव" कुदरत ने यहाँ आदमी, जो भेजा था,
उसे हिन्दू कभी मुस्लिम ने, यहाँ बाँट लिया!"
.............चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-०४.०१.२०१४
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