Monday 14 April 2014

♥♥♥आरोपित प्रेम..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आरोपित प्रेम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती!
क्या आरोप लगा देना ही, भावों की उपलब्धि होती!
क्यों आरोप लगाकर अपने, प्रेम को साबित करते हैं हम,
मगर जान लो आरोपों से, नहीं प्रेम में वृद्धि होती! 

सच्चाई को कहना सीखो, सच गलती को दूर करेगा!
पर केवल आरोपण करना, रोने को मजबूर करेगा!

घर आँगन में आरोपों से, नहीं कोई प्रसिद्धि होती!
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती...

आरोपों का अर्थ कठिन है, कहने में आसान रहा हो!
आरोपित व्यक्ति क्या बोले, वो जिससे अनजान रहा हो!
"देव" प्रेम के पथ में देखो, आरोपों से पीड़ा मिलती,
मानो अब तक प्यार वफ़ा के, रिश्तों में एहसान रहा हो!

एक दूजे में रखो आस्था और मन में विश्वास रखो तुम!
सच्चाई और अपनेपन का, बस दिल में एहसास रखो तुम!

आरोपों की बरसातों से, नहीं कोई समृद्धि होती!
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती!"

..................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१४.०४.२०१४

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