♥♥♥♥♥♥♥♥मजदूर के आंसू ♥♥♥♥♥♥♥
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!
बिन दवाओ के यहाँ घाव की दुखन सहता!
कोई समझे नहीं मज़दूर के हालातों को,
भूख और प्यास का जीते जी वो क़फ़न सहता!
हर सियासी इन्हे छलने का काम करता है!
झूठे आंसू से भरोसा का, नाम करता है!
इनका मालिक भी नहीं देता है मेहनत है धन,
उनका सुख, चैन तलक वो नीलाम करता है!
चूल्हा ठंडा है बहुत भूख की अगन सहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता...
बिना रोटी के वो ज़िंदा भी भला कैसे रहे!
वो भी इन्सान है आखिर वो जुल्म कितना सहे!
"देव" कोई न सुने उसकी आह और चीखें,
फिर भला किसपे यक़ीं, किससे यहॉँ दर्द कहे!
उसकी आँखों से आंसुओं का समंदर बहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!"
...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०१.०५.२०१४
" मई दिवस पर मजदूरों को नमन "
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!
बिन दवाओ के यहाँ घाव की दुखन सहता!
कोई समझे नहीं मज़दूर के हालातों को,
भूख और प्यास का जीते जी वो क़फ़न सहता!
हर सियासी इन्हे छलने का काम करता है!
झूठे आंसू से भरोसा का, नाम करता है!
इनका मालिक भी नहीं देता है मेहनत है धन,
उनका सुख, चैन तलक वो नीलाम करता है!
चूल्हा ठंडा है बहुत भूख की अगन सहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता...
बिना रोटी के वो ज़िंदा भी भला कैसे रहे!
वो भी इन्सान है आखिर वो जुल्म कितना सहे!
"देव" कोई न सुने उसकी आह और चीखें,
फिर भला किसपे यक़ीं, किससे यहॉँ दर्द कहे!
उसकी आँखों से आंसुओं का समंदर बहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!"
...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०१.०५.२०१४
" मई दिवस पर मजदूरों को नमन "
3 comments:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
गहन संवेदना से पूर्ण रचना !
एक दर्दनाक दृश्य मानसपटल से होकर गुज़रा. कभी तो मुक्ति मिलेगी शायद!
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