Thursday 29 May 2014

♥♥खुशियों की मुफ़लिसी ..♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की मुफ़लिसी ..♥♥♥♥♥♥♥♥
फुर्सत मिली कभी तो, पूछेंगे जिंदगी से!
हमने था क्या बिगाड़ा, जो दुख मिला सभी से!

सिक्के भी और सोना, चाँदी भी है बहुत पर,
कैसे करें गुजारा खुशियों की, मुफ़लिसी से!

रिश्ते भी आज झूठे, एहसास कुछ नहीं है,
हम भी नहीं करेंगे, अब प्यार ये किसी से!  

हर रोज जीते जी ही, मरना पड़ा हमे तो,
फिर खौफ कैसे खाते, हम यार ख़ुदकुशी से!

जिसको था दिल से चाहा, उसने ही दिल को तोड़ा,
अब पार कैसे पायें, हम ग़म से, बेबसी से!

सूरत को देखकर ख़ुश, आंसू ने हमको दे दें,
गुमनाम हैं तभी हम, डरते हैं हम ख़ुशी से! 

माना के "देव" मुझसे, गलती हुई थी लेकिन,
खायेंगे अब न  धोखा, जज़्बात में किसी से! "

.............चेतन रामकिशन "देव"….…......
दिनांक- २९.०५.२०१४

3 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (30.05.2014) को "समय का महत्व " (चर्चा अंक-1628)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

Vaanbhatt said...

सुन्दर भाव...बहुत खूब...

Asha Joglekar said...

बहुत बढिया गज़ल।