Tuesday, 22 July 2014

♥♥टूटे पत्ते ♥♥


♥♥♥♥टूटे पत्ते ♥♥♥♥
टूटे पत्ते, सूखी डाली!
कदम कदम पर है बदहाली!
चलने को मैं चलता हूँ पर,
पथ सूना है, मंजिल खाली!

उम्मीदों का दर्पण टूटा,
आशाओं की कड़ियाँ टूटीं!
अब जीवन है तनहा तनहा,
प्यार वफ़ा की लड़ियाँ टूटीं!

ढली चांदनी हंसी ख़ुशी की,
ग़म की छाई अमावस काली!
चलने को मैं चलता हूँ पर,
पथ सूना है, मंजिल खाली!

मेरे मन के हर कोने में,
दर्द बहुत होता रोने में!
"देव" डरातीं बिछड़ी यादें,
डर लगता है अब सोने में! 

रिक्त हुयी हाथों की रेखा,
लगे दूर से भले निराली! 
चलने को मैं चलता हूँ पर,
पथ सूना है, मंजिल खाली!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२२.०७ २०१४

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