Monday, 11 August 2014

♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥

♥♥♥♥♥♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥♥♥♥♥♥♥
मैं ज़ख्मों पे नमक फिर से, लगाकर देख लेता हूँ!
तुम्हारी याद का लम्हा, उठाकर देख लेता हूँ!

मेरी किस्मत, मेरी तक़दीर ने तो कुछ नहीं बख्शा,
लकीरें हाथ की अब आजमाकर, देख लेता हूँ!

सिसकते दर्द के कांटे, बदन पे जब भी चुभते हैं,
ग़मों की चांदनी मैं तब, बिछाकर देख लेता हूँ!

यहाँ इंसान बहरे हैं, गुहारें सुन नहीं पाते,
बुतों को दर्द अब अपना, सुनाकर देख लेता हूँ!

सुकूं जब रूह को न हो, हो ठहरी बेबसी दिल में,
ग़ज़ल मैं फिर तेरी एक, गुनगुनाकर देख लेता हूँ!

मिलन की चाह हो लेकिन, तेरे बदलाव का आलम,
तेरा रस्ता, तेरा कूचा, भुलाकर देख लेता हूँ!

कहीं पायल की रुनझुन हो, तेरे आने की उम्मीदें,
मैं एक अरसे से सूना घर, सजाकर देख लेता हूँ!

लगे तू चाँद सा मुखड़ा, अमावस चीर आएगा,
मैं अपनी रात फिर, बाहर बिताकर देख लेता हूँ!

तुम्हें सब कुछ बताया है, नहीं तुम "देव" झुठलाओ,
मैं बिखरे लफ्ज़ के टुकड़े, मिलाकर देख लेता हूँ! "

 .................चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१२ .०८. २०१४ 

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