♥♥♥
♥♥♥♥प्रेम भावना..♥♥♥♥
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
मेरे नयनों की ज्योति हो,
तुम ऊर्जा हो मेरे तन की!
स्वप्नों में तुम ही आती हो!
गीत प्रेम का तुम गाती हो!
फूलों सी देह तुम्हारी,
घर आँगन को महकाती हो!
बस तुमको ही छूना चाहूँ,
तुम भावुकता आलिंगन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...
प्रेम मुक्त है हर सीमा से,
सागर के जैसा गहरा है!
सब जिज्ञासा शांत हो गयीं,
मन जब से तुमपे ठहरा है!
तुम पावन हो गंगाजल सी,
न नीति हो प्रलोभन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...
विरह भाव का विष पीकर भी,
मैंने तुमको याद किया है!
यदि नहीं प्रत्यक्ष रहे तुम,
सपनों में संवाद किया है!
तेज मेरे चेहरे का तुमसे,
तुम्ही चपलता अंतर्मन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...
फिर से मेरे पथ आओगे,
यही सोच प्रतीक्षा करता!
"देव" मिलन की व्याकुलता में,
अश्रु से आँचल को भरता!
न कोई समकक्ष तुम्हारे,
यथा योग्य तुम अभिनन्दन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
प्रेम भावना मेरे मन की! "
प्रेम-जिसके प्रति होता है, अनेकों, असीम, अपार अनुभूतियाँ उसके लिए हृदय में उत्पन्न होती हैं,
प्रेम की लहरों को, किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता, प्रेम की भावनायें कभी मंद नदी सी स्थिर तो कभी सुनामी जैसी गतिमान होती हैं, तो आइये प्रेम की इस जल धारा का पान करें "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०४.०८.२०१४
♥♥♥♥प्रेम भावना..♥♥♥♥
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
मेरे नयनों की ज्योति हो,
तुम ऊर्जा हो मेरे तन की!
स्वप्नों में तुम ही आती हो!
गीत प्रेम का तुम गाती हो!
फूलों सी देह तुम्हारी,
घर आँगन को महकाती हो!
बस तुमको ही छूना चाहूँ,
तुम भावुकता आलिंगन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...
प्रेम मुक्त है हर सीमा से,
सागर के जैसा गहरा है!
सब जिज्ञासा शांत हो गयीं,
मन जब से तुमपे ठहरा है!
तुम पावन हो गंगाजल सी,
न नीति हो प्रलोभन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...
विरह भाव का विष पीकर भी,
मैंने तुमको याद किया है!
यदि नहीं प्रत्यक्ष रहे तुम,
सपनों में संवाद किया है!
तेज मेरे चेहरे का तुमसे,
तुम्ही चपलता अंतर्मन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...
फिर से मेरे पथ आओगे,
यही सोच प्रतीक्षा करता!
"देव" मिलन की व्याकुलता में,
अश्रु से आँचल को भरता!
न कोई समकक्ष तुम्हारे,
यथा योग्य तुम अभिनन्दन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
प्रेम भावना मेरे मन की! "
प्रेम-जिसके प्रति होता है, अनेकों, असीम, अपार अनुभूतियाँ उसके लिए हृदय में उत्पन्न होती हैं,
प्रेम की लहरों को, किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता, प्रेम की भावनायें कभी मंद नदी सी स्थिर तो कभी सुनामी जैसी गतिमान होती हैं, तो आइये प्रेम की इस जल धारा का पान करें "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०४.०८.२०१४
5 comments:
तुम अनुभूति हो जीवन की!
प्रेम भावना मेरे मन की! "
बहुत सुन्दर रचना !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
नई पोस्ट माँ है धरती !
आपकी लिखी रचना मंगलवार 05 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर....
बहुत ही सुंदर ....
"
हृदय से आभार "
Post a Comment