Saturday, 9 August 2014

♥♥दर्द का काल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का काल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं!
एक अरसे तक नहीं बदलते, पीड़ा के ऐसे मौसम हैं!
जिसकी मर्जी वही दर्द दे, आह कोई न सुनता मेरी,
लगता है सबकी नजरों में, पत्थर के बुत जैसे हम हैं!

पत्थर का दर्जा देकर के, तुमको क्या कुछ मिल पायेगा!
एक दिन देखो झूठ का पर्दा, इन आँखों से हट जायेगा!

सुन लेता हूँ हौले हौले, दर्द भरे सारे आलम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं...

क्यों लोगों को अपने दुख के, सिवा कुछ नहीं दिख पाता है!
क्यों शायर का कलम आजकल, नहीं हक़ीक़त लिख पाता है!
"देव" आईने में वो अपनी, शिक़न देखकर घबरा जाते,
मगर मेरे दिल के टुकड़ों का, ढ़ेर उन्हें न दिख पाता है!

बुरा वक़्त है इसीलिए तो, मेरी कुछ सुनवाई नहीं है!
इसीलिए तो हवा आजतक, ख़ुशी का झोंका लाई नहीं है!

झूठ का चेहरा उजला उजला, सच के मानों बुरे करम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं! "

.................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०९ .०८. २०१४

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