♥♥♥♥♥♥अमन...♥♥♥♥♥♥♥♥
आदमी का हो आदमी से मिलन।
द्वेष, हिंसा का ये थमेगा चलन।
प्रेम के फूल जब खिलेंगे यहाँ,
"देव" खिल जायेगा अपना ये वतन।
खून मेरा हो या तुम्हारा हो,
रंजिशों में क्यों हम बहायें इसे।
देश ये देखो हम सभी का है,
ठोकरों से क्यों हम गिरायें इसे।
आग गर ऐसे ही दहकती रही,
बेगुनाहों का ही जलेगा बदन।
आदमी का हो आदमी से मिलन ....
नफरतों से नहीं मिला नहीं कुछ भी,
देखो इतिहास की, गवाही है।
गोद अम्मी की, माँ सूनी हुई,
हर तरफ चीख है, तबाही है।
अब चलो रंजिशों को छोड़ चलो,
देश में आओ अब करेंगे अमन!
आदमी का हो आदमी से मिलन।
द्वेष, हिंसा का ये थमेगा चलन। "
......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०७.१०.२०१४
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