Tuesday, 25 November 2014

♥♥मेरा मुझमें क्या...♥♥

♥♥♥♥मेरा मुझमें क्या...♥♥♥♥
तुमसे मिलने जुलने का मन। 
साथ तुम्हारे चलने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। 

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,
मेरा मुझमें शेष नहीं कुछ। 
तुमने कोमलता सिखलाई,
अब मन में आवेश नहीं कुछ। 

जो तेरे माकूल हो वैसे,
तेरी ख़ातिर ढ़लने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। 

जब से तुम भावों में आये,
कविताओं के फूल खिले हैं। 
शब्द भी रहते "देव" कलम में,
एहसासों को रंग मिले हैं। 

तेरे अधरों की नरमी को,
हिम से जल में घुलने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। "

......चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक-२६.११.२०१४ 

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