♥♥♥♥♥♥♥♥माँ की एक छुअन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है।
कष्ट में संतान हो तो माँ का, चैन सुकूं खोने लगता है।
माँ तो माँ है संतानों की, सूरत में दुनिया को देखे,
नींद तभी आती है माँ को, जब बच्चा सोने लगता है।
माँ की ममता इतनी व्यापक, लाखों सागर भर जाते हैं।
माँ को खुशियां मिलती हैं जब, बच्चे अच्छा कर जाते हैं।
माँ की एक छुअन भर से ही, दर्द दूर होने लगता है।
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है।
माँ कविता जैसी कोमल है, माँ गीतों जैसी प्यारी है।
माँ लेखन की खुशबू में है, माँ उपवन है, फुलवारी है।
माँ गौरी हो, या काली हो, फ़र्क़ नहीं पड़ता है इससे,
माँ की ममता धवल चांदनी, माँ की ममता मनोहारी है।
माँ अपनी संतान के आंसू, बिना झिझक के पीना चाहे।
माँ बच्चों की खुशियों में ही, अपना जीवन जीना चाहे।
माँ खुश होती है जब बच्चा, ख्वाबों का बोने लगता है।
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है।
माँ मिथ्या के अनुसरण का, ज्ञान नहीं बच्चों को देती।
माँ ईर्ष्या का, द्वेष का किंचित, दान नहीं बच्चों को देती।
"देव " जहाँ में माँ से सुन्दर, कोई छवि नहीं हो सकती,
माँ भूले दुख का विष का, पान नहीं बच्चों को देती।
माँ की आँखों में बच्चों की, सूरत हर पल ही रहती है।
माँ को हो सम्मान सदा ही, सारी कुदरत ये कहती है।
माँ की ऐसी ममता से तो, ज़हर-मधु होने लगता है।
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। "
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माँ- शब्दकोष के सभी शब्द जो प्रसंशा के लिए, सम्मान के लिए, अपनत्व के प्रयुक्त होते हों, वे समूचे शब्द माँ की ममता में निहित होते हैं, माँ के ऐसे व्यापक स्वरूप को नमन। "
" मेरी ये रचना मेरी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को सादर समर्पित। "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २९.११.२०१४
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