♥♥♥♥♥मुफ़लिस...♥♥♥♥♥♥
खून, पसीना बह जाता है।
मुफ़लिस बेबस रह जाता है।
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है।
इन सरकारी दवा घरों में,
दवा नाम भर को मिलती है।
मुफ़लिस को तो कदम कदम पर,
ये सारी दुनिया छलती है।
मजदूरी को जाने वाले कितने,
देखो मर जाते हैं,
लावारिस में दर्ज हो गिनती,
कफ़न तलक भी कब मिलती है।
चौथा खम्बा भी खुलकर के,
कब इनका हक़ कह पाता है।
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है …
सरकारों की अब मुफ़लिस के,
दर्द पे ज्यादा नज़र जरुरी।
बिन छत के जो जले धूप में,
उसकी खातिर शज़र जरुरी।
"देव" देश के मुफ़लिस की हो,
बात जात मजहब से हटकर,
प्यास उसे भी लगती देखो,
उसको भी तो लहर जरुरी।
बिना सबूतों के वो बेबस,
कड़ी सजा भी सह जाता है।
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४
खून, पसीना बह जाता है।
मुफ़लिस बेबस रह जाता है।
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है।
इन सरकारी दवा घरों में,
दवा नाम भर को मिलती है।
मुफ़लिस को तो कदम कदम पर,
ये सारी दुनिया छलती है।
मजदूरी को जाने वाले कितने,
देखो मर जाते हैं,
लावारिस में दर्ज हो गिनती,
कफ़न तलक भी कब मिलती है।
चौथा खम्बा भी खुलकर के,
कब इनका हक़ कह पाता है।
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है …
सरकारों की अब मुफ़लिस के,
दर्द पे ज्यादा नज़र जरुरी।
बिन छत के जो जले धूप में,
उसकी खातिर शज़र जरुरी।
"देव" देश के मुफ़लिस की हो,
बात जात मजहब से हटकर,
प्यास उसे भी लगती देखो,
उसको भी तो लहर जरुरी।
बिना सबूतों के वो बेबस,
कड़ी सजा भी सह जाता है।
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४
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