Monday 1 December 2014

♥♥रस्म प्यार की......♥♥

♥♥♥♥रस्म प्यार की......♥♥♥♥
जान बूझकर खता कर रहे।
रस्म प्यार की अता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे।

प्यार नाम का भी क्या करना,
जो सूरत भी याद रहे न। 
इतना अनदेखा भी क्यों हो,
जो कोई संवाद रहे न। 
यदि निहित तुम हो नहीं सकते,
नहीं सुहाती प्यार की भाषा,
तो क्यों ऐसा ढोंग दिखावा,
जिसमे दिल आबाद रहे न।

जो चाहते थे नाम हमारा,
वही हमें लापता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे...

क्यों रिश्तों में रस्म निभानी,
क्यों चाहत की नींव गिरानी। 
क्यों देकर के झूठी खिदमत,
किसी के दिल को ठेस लगानी। 
"देव " प्यार के संग में ऐसा,
बोलो ये खिलवाड़ भला क्यों,
साथ नहीं जब दे सकते तो,
क्यों झूठी उम्मीद बंधानी।

वो क्या देंगे यहाँ सहारा,
अनुभूति जो धता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४






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