♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥टूट गया मन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली है।
फूल दुखों की आंच में झुलसे, सूनी सूनी हर एक कली है।
कुछ सपने हाथों में लेकर, जब भी पूरा करना चाहा,
किस्मत के संग अपनों का छल, लम्हा लम्हा मात मिली है।
किसको दिल का हाल बताऊँ, कौन यहाँ पर दुख सुनता है।
कौन किसे के ख्वाब यहाँ पर, अपने हाथों से बुनता है।
मैंने चाही धूप खुशी की, पर गम की बरसात मिली है।
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली है...
हार गया मन, रूठ गया मन, टुकड़े होकर टूट गया मन।
लोग बढ़ गये हमे गिराके, सबसे पीछे छूट गया मन।
"देव" जहाँ में नहीं किसी ने, मन को मेरे, मन से जोड़ा,
तन्हा होकर, गिरा अर्श से, फर्श पे गिरकर फूट गया मन।
मन के टुकड़े देख देख कर, आँखों से आंसू बहते हैं।
लोगों के दिल हैं छोटे पर, बड़ी बड़ी बातें कहते हैं।
उम्र है छोटी मगर ग़मों की, बड़ी बड़ी सौगात मिली है।
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली है। "
...................चेतन रामकिशन "देव"……............
दिनांक--२३.१२.२०१४
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