♥♥♥♥चंद्र खिलौना...♥♥♥♥♥
मन में हो जब चंद्र खिलौना।
माँ की गोदी के बिन रोना।
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना।
केवल हठ हो कुछ नहीं सुनना।
अपनी इच्छा से सब चुनना।
टुकर टुकर देखे आँखों से,
बिन गिनते के तारे गिनना।
माँ की लोरी सुनकर सीखा,
उसने गहरी नींद में सोना।
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना....
चंचल चितवन और नादानी।
भाव नहीं होते अभिमानी।
"देव" नहीं बचपन को आती,
सोच लोभ की, न कोई हानि।
अपने पांव के अँगठे को,
लार में अपनी बहुत डुबोना।
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना। "
.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--२८.१२.२०१४
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