Sunday, 7 December 2014

♥♥♥इक्कीसवीं सदी...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥इक्कीसवीं सदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है। 
कहने को वो चाँद से आगे निकल गया है। 
हौड़ मची है दमके, नाम, अहम उसका, 
इसीलिए इन्सां का खूं भी, निगल गया है। 

छाती चौड़ी, शब्द बड़े हैं, लेकिन छोटा दिल रखता है। 
आज आदमी अपने दिल में, नफरत की महफ़िल रखता है। 
किसी के हक़ पे डाका डाले, किसी के घर की लूटे अस्मत,
पढ़ा लिखा होकर भी मानव, अब खुद को जाहिल रखता है। 

हर दिल में तेज़ाब यहाँ पर उबल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है...

नीली स्याही लाल हो गयी, अब रंगत बदहाल हो गयी। 
बस पैसों की खातिर सबकी, बदली बदली चाल हो गयी। 
कोई किसी के दुःख में आकर, नहीं बांटता जरा दिलासा,
कोष में लाख-करोड़ों लेकिन, मानवता कंगाल हो गयी। 

पल भर में अरमान यहाँ कोई कुचल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है... 

नहीं पता है आगे का, क्या आलम होगा।  
"देव" न जाने जुर्म, कभी ये कम होगा। 
घर घर में पिस्तौल की खेती होगी तब,
हर बच्चे के हाथ में, शायद बम होगा।  

आज आदमी सच्चाई से फिसल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है। "

...............चेतन रामकिशन "देव"……............
दिनांक--08.12.2014

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