♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आँचल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जो मेरे हाथ से आँचल, तेरा फिसला नही होता।
सफ़र ये जिंदगी का फिर, कभी धुंधला नहीं होता।
जलाये हैं बहुत दीपक, मशालें भी जलाईं पर,
ये तन्हा याद का रस्ता, कभी उजला नही होता।
हवायें प्यार से भीगीं, तपन कम कर रहीं होतीं,
तेरी दहलीज से आगे, मैं जो निकला नहीं होता।
हँसी होती, ख़ुशी होती, झलकता नूर चेहरे पर,
अगर तेज़ाब सीने में, मेरे उबला नहीं होता।
नदी के छोर पर बैठे, सुनाते प्यार की बातें,
अहम में रुख जो मैंने, अगर बदला नहीं होता।
सहारा हर घड़ी मिलता, डगर आसान हो जाती,
जो लावा झूठ का दिल में, मेरे पिघला नही होता।
मैं तुझसे "देव" माफ़ी भी, यहाँ पर मांग लेता पर,
मेरे हाथों से तेरा दिल, अगर उछला नहीं होता। "
.................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक--२७.०१.१५
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