Tuesday 27 January 2015

♥♥मज़बूरी...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मज़बूरी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
उसे किरदार फिर कोई निभाना पड़ रहा होगा। 
बहुत मज़बूरी में मुझको भुलाना पड़ रहा होगा। 

वो मुफ़लिस बाप की बेटी, कहाँ से लायेगी गाड़ी,
सहमकर आप ही खुद को, जलाना पड़ रहा होगा। 

यहाँ न प्यार की कीमत, नहीं के मेल हो दिल का ,
फ़क़त वो नाम का रिश्ता, जताना पड़ रहा होगा। 

हसीं इस चाँद को गहरी, अमावस कर रही काला,
वो माँ को भूखा ही बच्चा, सुलाना पड़ रहा होगा। 

हुये हैं चीथड़े दिल के, जफ़ा की चोट खाकर के,
जनाजा आप ही खुद को, उठाना पड़ रहा होगा। 

उम्र भर भूख पैसों की, बनाये हैं महल ऊँचे,
जो आई मौत तो खाली ही, जाना पड़ रहा होगा। 

सुनो तुम "देव" मेरी माँ, न पढ़ले दर्द चेहरे का,
मुझे हंसकर तभी हर गम, छुपाना पड़ रहा होगा।" 

................चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक--२८.०१.१५


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