Saturday, 31 January 2015

♥♥पत्रक...♥♥


♥♥♥♥♥♥पत्रक...♥♥♥♥♥♥♥
रिश्तों का संसार लिखा था। 
भावों का विस्तार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था। 

जिसकी खातिर अपनापन हो,
वही ग़मों से भर देता है। 
शीशे जैसे नाजुक दिल को,
टुकड़े टुकड़े कर देता है। 

लूटा उसने बेरहमी से,
वो जिसको हक़दार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था...

मन के उपवन की भूमि पर,
खून की बारिश कर देते हैं। 
अपने मंसूबों की धुन में,
किसी को तन्हा कर देते हैं। 

पतझड़ उसने दिया है मुझको,
वो जिसको सिंगार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था...

अपने होते नहीं नाम के,
दुख का बोध किया करते हैं। 
नहीं दंड दें बिना जुर्म के,
न अवरोध किया करते हैं। 

"देव" कर रहा वो अपमानित,
वो जिसको सत्कार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था। "

.......चेतन रामकिशन "देव"……।
दिनांक--३१.०१.१५

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