♥♥♥♥♥दोषारोपण...♥♥♥♥♥♥
दोषारोपण भला किसलिये।
ये आरोपण भला किसलिये।
प्रेम किया, अपराध नहीं फिर,
मेरा शोषण भला किसलिये।
क्यों पीड़ा का अम्ल डालकर,
मेरा मन घायल करते हो।
क्यों मेरे कोमल भावों के,
साथ में ऐसा छल करते हो।
मैं भी मानव हूँ तुम जैसा,
शिलाखंड, पाषाण नहीं हूँ,
क्यों मेरे नयनों में निशदिन,
अश्रु का ये जल भरते हो।
सच्चाई के साथ रहो तुम,
मिथ्या पोषण भला किसलिये।
प्रेम किया, अपराध नहीं फिर,
मेरा शोषण भला किसलिये...
जीवन भर की सौगंधे थीं,
तुम क्षण भर में बदल गये हो।
मुझको एकाकीपन देकर,
दूर बहुत तुम निकल गये हो।
"देव" कहाँ है वो अपनापन,
बात बात पे जो कहते थे,
आज परायापन दिखलाकर,
मेरे मन को कुचल गये हो।
तीर चुभाकर मेरे रक्त का,
ये अवशोषण भला किसलिये।
प्रेम किया, अपराध नहीं फिर,
मेरा शोषण भला किसलिये। "
......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक--०१.०२ .१५
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