Sunday, 1 February 2015

♥♥सिसकते लफ्ज़...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सिसकते लफ्ज़...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सिसकते लफ्ज़ हैं, इनको जरा आराम करने दूँ। 
ख़ुशी झूठी सही पर आज, इनके नाम करने दूँ। 

इन्हें भी हक़ है हंसने का, मैं इनकी खोलकर बेड़ी,
उभरकर खिलखिलाने का, जरा सा काम करने दूँ। 

पसीना इनके माथे पर, छलक आया था मेरे संग,
भरे जो अश्क़ हैं इनमें, उन्हें नीलाम करने दूँ। 

गगन में दूर तक उड़ना, है इनके दिल की ख्वाहिश में,
उजाला धूप से लेकर, मचलती शाम करने दूँ। 

न सोचा "देव" इनका हक़, नहीं जानी कोई हसरत,
इन्हें भी प्यार में खुद को, जरा गुलफाम करने दूँ।  "

................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक--२८.०१.१५

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