♥♥♥♥♥♥♥♥♥ये कैसा अमरप्रेम...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम को ईश्वर की संज्ञा दे, पीड़ा क्यों प्रदान कर रहे।
एक क्षण में ही तोड़ के नाता, जीवन से प्रस्थान कर रहे।
कहाँ गयीं वो सब सौगन्धें, जिनका बहुत मान करते थे,
क्यों मेरे जीवित होते भी, तुम मुझको अवसान कर रहे।
क्या कलयुग में प्रेम भावना, क्षण में जर्जर हो जाती है।
यदि अमर है प्रेम जोत तो, कैसे नश्वर हो जाती है।
क्यों फिर सबसे रहो प्रेम के, नारे का आहवान कर रहे।
प्रेम को ईश्वर की संज्ञा दे, पीड़ा क्यों प्रदान कर रहे...
प्रेम दिवस पर पुष्प भेंट कर, केवल प्यार नहीं होता है।
बिना समर्पण प्रेम भाव का, बेड़ा पार नहीं होता है।
करो वर्ष भर तुम उत्पीड़न और एक दिन दिखलाओ उपवन,
अभिमान इस प्रेम भाव का, सुखमय सार नहीं होता है।
प्रेम जहाँ होता है वो जन, अत्याचार नही करते हैं।
नहीं बेचते वो भावों को, वो व्यापार नहीं करते हैं।
तुम मिथ्या के रौब गांठकर, क्यों मेरा अपमान कर रहे।
प्रेम को ईश्वर की संज्ञा दे, पीड़ा क्यों प्रदान कर रहे...
तुम क्या जानो कष्ट हमारा, तुमने मेरा भाव न जाना
तुम बस खुद के लिये जिये हो, तुमने मेरा घाव न जाना।
"देव" न लेना नाम प्यार का, प्यार का जब सत्कार नहीं तो,
तुम निर्दयी हो तुमने मेरे, अश्रु का सैलाब न जाना।
कोमल मन को छलनी करके, अहंकार जो दिखलाते हैं।
वे क्या जानें सौगंधों को, जो भावों को झुठलाते हैं।
तुम व्यापारी अपने हित में, बस मेरा नुकसान कर रहे।
प्रेम को ईश्वर की संज्ञा दे, पीड़ा क्यों प्रदान कर रहे। "
....................चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक-१४.०२.२०१५
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