♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वास्ता...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पांव में छाले पड़े हैं, जिस्म भी अब काँपता है।
कौन है पर जो हमारे, दर्द को अब भाँपता है।
एड़ियां भी फट गयीं हैं, और कांटे चुभ रहे हैं,
क्या कोई इस उम्र में भी, रास्तो को नापता है।
रात काटी है तड़प कर, दिन में रोटी की जुगत हो,
जिंदगी का जाने कब तक, मुझ से ऐसा वास्ता है।
फूल की राहों पे चलना, हक़ है केवल मालिकों का,
क्या किसी मुफ़लिस की खातिर, भी गुलों का रास्ता है।
कोई कम कपड़ों में हो तो, कैमरे चलने लगेंगे,
पर किसी भूखे का नंगा, तन भी कोई छापता है।
लफ्ज़ तो इतने बड़े के, आँख में आते नहीं हैं,
क्या मगर दिल से भी कोई, प्रेम सागर वांचता है।
"देव" क्या कहना किसी से, कौन है हमदर्द आखिर,
मतलबों के इस जहाँ में, मतलबों का वास्ता है। "
.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२०.०२.२०१५
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