Wednesday, 25 February 2015

♥♥♥मैं पुरुष हूँ...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मैं पुरुष हूँ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शांत जल के भाव लेकर, मौन हूँ तट के किनारे।
कौन है जो खो गया है, किसको मेरा मन पुकारे।

मैं पुरुष हूँ इसीलिये क्या, भाव मेरे अनुसने हैं।
झूठ क्यों लगते हैं तुमको, स्वप्न जो मैंने बुनें हैं।
क्या जगत में स्त्री होना, प्रेम का सूचक है केवल,
क्यों मुझे उपहास मिलता, भाव जो मन के सुने हैं।

है पुरुष होना गलत तो, कौन है जो ये सुधारे।
कौन है जो खो गया है, किसको मेरा मन पुकारे...

क्यों तुम्हें लगता है केवल, प्रेम की तुम ही निधि हो। 
तुम क्यों सोचो प्रेम पथ पर, एक ही बस तुम सधी हो। 
जो पुरुष हूँ तो क्या मेरा, भावना से रिक्त है मन,
मैं भी कोई विष नहीं हूँ, तुम जो कोई औषधी हो। 

आपकी तरह ही बहता, प्रेम जीवन में हमारे। 
कौन है जो खो गया है, किसको मेरा मन पुकारे....

न पुरुष हर कोई अच्छा, न ही स्त्री हर सही है। 
और न वर्गीकरण से, प्रेम की धारा बही है। 
"देव" वो रिश्ता चलेगा, जिसमें दर्पण हों परस्पर,
बस स्वयंभू बनके जग में, प्रीत कब जीवित रही है। 

जीतकर भी क्या वो जीते, दंड पाकर हम जो हारे।  
कौन है जो खो गया है, किसको मेरा मन पुकारे। "

................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२५.०२.२०१५

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