Wednesday, 25 March 2015

♥♥धूप....♥♥



♥♥♥♥♥♥धूप....♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे चित्र सजा दो फिर से। 
खोयी रौनक ला दो फिर से।  
अँधेरे को काबू में कर,
धूप नयी फैला दो फिर से। 

तुमसे ही उम्मीद है बाकि,
इसीलिए तुमसे कहता हूँ। 
तुम बिन चित्त नहीं हर्षाता,
मुरझाया सा मैं रहता हूँ। 

कंठ तुम्हारे बिन चुप चुप है,
प्रेम की सरगम ला दो फिर से। 
अँधेरे को काबू में कर,
धूप नयी फैला दो फिर से.... 

रेखाचित्र तुम्हे सौंपा है,
अपना इसको तुम रंग देना। 
खुशियों में तो साथ सभी दें,
दुख में भी अपना संग देना। 

"देव" प्रेम के ढ़ाई अक्षर,
कानों में बतला दो फिर से। 
अँधेरे को काबू में कर,
धूप नयी फैला दो फिर से। "

......चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२६.०३.२०१५


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