Monday, 23 March 2015

♥♥शब्दाक्षर...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दाक्षर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सृजक हूँ, सृजन चाहता हूँ, भावों का जीवन चाहता हूँ। 
मेरे मन को भी पढ़ ले जो, ऐसा कोई मन चाहता हूँ। 
अक्षर से अक्षर का नाता, जोड़ सकूँ बस ये ख्वाहिश है,
न सोने के मुकुट की इच्छा, न चांदी का तन चाहता हूँ। 

नहीं पता क्यों प्यार है मुझको, अपने शब्दों से, अक्षर से। 
नहीं पता क्यों प्यार है मुझको, भावों के बहते सागर से। 
नहीं पता मैं क्यों शब्दों को, अपना हर एक राज बताता,
नहीं पता क्यों प्यार है मुझको, शब्दों के नीले अम्बर से। 

शब्दों को जो ममता दे वो, एक ऐसा आँगन चाहता हूँ। 
न सोने के मुकुट की इच्छा, न चांदी का तन चाहता हूँ....

प्रेम कठिन है, पीड़ा पायी, दवा नही कुछ दुआ चाहिये। 
खुलकर के जो सांस ले सकूँ, ऐसी मुझको हवा चाहिये।  
"देव" मेरे दहके मन को जो, अपने आँचल की छाया दे,
जीवन के इस पथ पर मुझको, बस इतनी सी वफ़ा चाहिये।  

व्याकुल मन को शांत कर सके, एक लुम्बिनी वन चाहता हूँ। 
न सोने के मुकुट की इच्छा, न चांदी का तन चाहता हूँ। "

......................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-२४.०३.२०१५

No comments: