♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सिंदूरी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काव्य कोष में बड़ी रिक्तता, तुम आ जाओ तो पूरी हो।
तुम्हें देखकर नयना हर्षित, मांग हमारी सिंदूरी हो।
भाषा शैली भव्य तुम्हारी, रात दिवस तुमसे बतिआऊं,
बहुत सुगन्धित प्रेम तुम्हारा, जैसे कोई कस्तूरी हो।
है मेरे में बहुत बचपना, मुझसे क्रोधित हुआ करो न।
मेरा मन स्पर्श को तरसे, तुम आकर के छूआ करो न।
साथ रहो तुम मेरे हर क्षण, नहीं तनिक सी भी दूरी हो।
काव्य कोष में बड़ी रिक्तता, तुम आ जाओ तो पूरी हो ....
स्वप्नों का हम गठन करेंगे, साथ साथ प्रयास करेंगे।
दुःख आएगा तो झेलेंगे, हंसने का अभ्यास करेंगे।
"देव" परस्पर मन की उलझन, सुलझांयेंगे हम मिल जुल कर,
एक दूजे के जीवन पथ पर, आपस में विश्वास करेंगे।
दीपक जैसे राह दिखाना, यदि तिमिर में घिर जाऊं मैं।
मेरा प्रेम नहीं स्वयंभू, जो कसमों से फिर जाऊं मैं।
टूट गयी हूँ बिना तुम्हारे, नहीं कभी फिर से दूरी हो।
काव्य कोष में बड़ी रिक्तता, तुम आ जाओ तो पूरी हो। "
.................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-१८.०३.२०१५
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