Sunday 15 March 2015

♥♥विध्वंस...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विध्वंस...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मृत्यु चारों ओर मचलती, अब जीवन का अंश नहीं है। 
कौन सा ऐसा क्षण है जिसमें, मानो के विध्वंस नही है। 
संबंधों की हत्या करना, यहाँ प्रचलन हुआ रोज का,
शेष नही वो रक्त कोशिका, जिसमे दुख का दंश नहीं है। 

मानवता दण्डित होती है, यहाँ भाव मारे जाते हैं। 
जो सबको अपनापन देते, लोग वही हारे जाते हैं। 
अनुरोध या करुण निवेदन, नहीं मान कोई करता है,
सक्षम होकर भी कोई जन, नहीं किसी का दुख हरता है। 

बाहर से उजले हैं किन्तु, मन से कोई हंस नही है। 
मृत्यु चारों ओर मचलती, अब जीवन का अंश नहीं है.... 

बुद्धि शायद मंद है मेरी, नहीं आंकलन कर पाता हूँ। 
निर्दोषों को दंड दे सकूँ, नहीं प्रचलन कर पाता हूँ। 
"देव" सिमट जाता हूँ स्वयं मैं, अपने अश्रु पी लेता हूँ,
मैं चाहकर भी पाषाणों सा, चाल चलन नही कर पाता हूँ। 

भाषा मैंने प्रेम की बोली, हिंसा का अपभ्रंश नहीं है। 
मृत्यु चारों ओर मचलती, अब जीवन का अंश नहीं है। "

................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१६.०३.२०१५

No comments: