♥♥♥♥♥♥फसल...♥♥♥♥♥♥♥
फसल ग़मों की बड़ी हो गयी,
करें काटने की तैयारी।
विष पीकर के रात कटी थी,
अब आयी है दिन की बारी।
अपने हर एहसास को मैंने,
मिट्टी में अब मिला दिया है,
क्यूंकि दुनिया में नहीं होती,
दिल से दिल की नातेदारी।
एहसासों की कद्र नहीं है,
सभी वसीयत चाहते सुख की।
कोई नहीं पढ़ना चाहता है,
पीड़ा यहाँ किसी के मुख की।
कोई नहीं हमदर्द है तो फिर,
दर्द की किससे साझेदारी।
फसल ग़मों की बड़ी हो गयी,
करें काटने की तैयारी ...
अनुकरण के भाव नहीं हैं,
सब उपदेशक बनना चाहें।
खुद का जीवन नहीं संभलता,
पर निर्देशक बनना चाहें।
"देव" यहाँ पर मिन्नत कोई,
नहीं सुना करता है देखो,
लेकिन पुस्तक के पन्नों पर,
प्रेम के प्रेषक बनना चाहें।
दिवस रात बढ़ती रहती है,
जीवन में ग़म बीमारी।
फसल ग़मों की बड़ी हो गयी,
करें काटने की तैयारी। "
.......चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-१२.०३.२०१५
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