♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरे केश की बूंदें...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
यदि मिलन तुमसे हो जाता, भाव विरह का कम हो जाता।
गिरती बूंदें तेरे केश से, सूखा पथ भी नम हो जाता।
मुझमें भी आ जाती ऊर्जा, स्वप्न मेरी आँखों में सजते,
दीप हर्ष के जलने लगते, दूर ये सारा तम हो जाता।
रात को तेरा रस्ता देखा, हर दिन तुम्हें पुकारा मैंने।
खुद को पत्थर माना किन्तु, तुमको चाँद सितारा मैंने।
चित्र तुम्हारा सम्मुख रखकर, किया हमेशा प्रेम निवेदन,
अनजाने में भूल हुयी पर, खेद यहाँ स्वीकारा मैंने...
जीने को तो जी लेता हूँ, पर तुम बिन उत्साह नहीं है।
जगत समूचा पास है किन्तु, मुझे किसी की चाह नहीं है।
"देव" जुड़ा है मन तुमसे तो, तभी तेरी प्रतीक्षा करता,
वरना दुनिया आनी जानी, मुझे किसी की राह नहीं है...
तुम जो देतीं साथ अगर तो, मैं भी बल विक्रम हो जाता।
दीप हर्ष के जलने लगते, दूर ये सारा तम हो जाता। "
....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०८.०३.२०१५
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