♥♥♥♥♥♥♥♥♥एक नारी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
एक नारी वेदना के विष को, निश दिन पी रही है।
एक नारी जिंदगी को, दंड जैसे जी रही है।
हाँ सही अपवाद हैं कुछ, पर यही अधिकांशत है,
एक नारी अपने मन के टुकड़े, खुद ही सी रही है।
उसके मन में है समर्पण, जिसकी सीमा तय नहीं है।
क्यों मगर स्त्री की फिर भी, इस जगत में जय नहीं है।
कौन ऐसा रास्ता है, वो जहाँ पर हो सुरक्षित,
कौन सी ऐसी जगह है, उसको जिस पर भय नहीं है।
अपने अश्रु भोर, संध्या, रात, दिन वो पी रही है।
एक नारी वेदना के विष को, निश दिन पी रही है...
वो नहीं चाहती समूचे, विश्व पर हो राज उसका।
वो तो चाहती है ख़ुशी से, पूर्ण हो कल-आज उसका।
उसके मन की वेदना को, कोई बस पढ़ले यहाँ पर।
तो ही स्त्री खुश रहेगी, अपनी दुनिया और जहाँ पर।
अपने घर की पूर्णता को, रिक्त होकर जी रही है।
एक नारी वेदना के विष को, निश दिन पी रही है...
उसका आँचल रक्त में, डूबे नहीं प्रयास दे दो।
वो भी चाहती है दमकना, उसको तुम उल्लास दे दो।
"देव" नारी भी पराक्रम और पूरित योग्यता से,
वो तुम्हे दे चांदनी और तुम उसे प्रकाश दे दो।
मल दो मरहम घाव पे वो, जिसको नारी सी रही है।
एक नारी वेदना के विष को, निश दिन पी रही है। "
" अपने त्याग, समर्पण एवं स्नेह से, आँगन में जीवन भरने वाली, महिला शक्ति नमन के योग्य है, एक ऐसा जगत बन सके जहाँ नारी और पुरुष, दो ध्रुव नहीं बल्कि एक पृथ्वी, एक आसमान, एक ब्रहमांड बन जाएँ, निहित हो जायें, मान-सम्मान और स्वाभिमान, इसी कामना में। "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०८.०३.२०१५
" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित है। "
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